सौदा
वंश पिता के इंतजार में दरवाजे पर बैठा हुआ था । यह इंतजार उसके लिए कोई नई बात नहीं थी बल्कि यही तो उसकी नियति थी और अकेलापन दूर करने का तरीका भी। वंश की माँ उसे जन्म देते ही मर गई थी और आया ही उसकी देखभाल करती थी। वंश के पिता सवेरे ही अपने काम पर चले जाते थे और अक्सर देर रात को जब तक वापस आते थे तब तक वह इंतजार करते -करते सो चुका होता था।
वंश का मन करता कि वह भी दूसरे बच्चो की तरह अपने पिता के साथ खेले लेकिन पिता पैसा कमाने की होड़ में जैसे अपने बच्चे को भूल ही गए थे। उनके पास अपने अकेले बच्चे के लिए बिलकुल भी समय नहीं था । एक दिन पिता कुछ जल्दी वापस आ गए, वंश पिता के इंतजार में दरवाजे पर बैठा हुआ था, पिता को देखते ही उसका चेहरा खिल गया ,वह खुश होकर पिता से लिपट गया , थोड़ी देर बाद जब उसके पिता हाथ-मुहं धोकर आ गए तब वंश ने पिता से पूंछा -पापा आप बहुत मेहनत करते हो न ? पिता ने कहा -हाँ !मैं देर तक काम करता हूँ । वंश ने फिर पूंछा - पापा आपको एक घंटा काम करने का कितना पैसा मिलता है ? पिता ने झुंझलाते हुए कहा-तुम्हे इन बातो से कोई मतलब नहीं होना चाहिए तुम अभी बच्चे हो और बच्चों जैसी बातें करा करो।वह बार-बार जिद करता रहा , आखिर पिता ने कहा कि मैं एक घंटे में १०० रूपये कामता हूँ। वंश थोड़ी देर तक चुप रहा और बोला- पापा मुझे ५० रूपये चाहिए।
क्या इसीलिये पूंछ रहे थे कि मैं एक घंटे कितने रूपये कामता हूँ ? क्या करोगे ५० रूपये का तुम, पिता ने गुस्से से पूछा ? मैं कुछ खरीदना चाहता हूँ, वंश ने जवाब दिया। मैं किसी फालतू चीज के लिए पैसे नहीं दे सकता , जाओ जाकर अपने कमरे में सो जाओ-पिता ने गुस्से में कहा ,वंश बार-बार जिद करता रहा तो पिता ने उसके एक चांटा जड़ दिया। वह रोते हुए अपने कमरे में चला गया। वंश को रोते हुए देख कर पिता का दिल पिघल गया , वह सोचने लगे कि वह वंश के साथ कुछ ज्यादा ही सख्त हो गए। उसने रोते हुए वंश को एक ५० का नोट दे दिया और कहा कि चलो अब लाइट बंद करो और सो जाओ।
बहुत देर तक जब वंश के कमरे की लाइट बंद नहीं हुई तो उन्होंने अन्दर जाकर देखा। वंश अपनी गुल्लक तोड़ कर पैसे गिन रहा था। अब तो उनके क्रोध की कोई सीमा न रही ।तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई गुल्लक को तोड़ने की ? क्या करोगे तुम इतने पैसों का ? गुस्से में पिता ने पूंछा।
क्योकि मेरे पास पूरे पैसे नहीं थे रोते हुए वंश ने कहा। उसने अपना हाथ आगे बढा कर कहा- पापा ! अब मेरे पास पूरे १०० रूपये हैं, मैंने बहुत दिनों में इकट्ठे किए हैं। क्या मैं आपका एक घंटा खरीद सकता हूँ ? आप प्लीज कल जल्दी घर वापस आ जाना, मैं आपके साथ कुछ समय बिताना चाहता हूँ ।
वंश का मन करता कि वह भी दूसरे बच्चो की तरह अपने पिता के साथ खेले लेकिन पिता पैसा कमाने की होड़ में जैसे अपने बच्चे को भूल ही गए थे। उनके पास अपने अकेले बच्चे के लिए बिलकुल भी समय नहीं था । एक दिन पिता कुछ जल्दी वापस आ गए, वंश पिता के इंतजार में दरवाजे पर बैठा हुआ था, पिता को देखते ही उसका चेहरा खिल गया ,वह खुश होकर पिता से लिपट गया , थोड़ी देर बाद जब उसके पिता हाथ-मुहं धोकर आ गए तब वंश ने पिता से पूंछा -पापा आप बहुत मेहनत करते हो न ? पिता ने कहा -हाँ !मैं देर तक काम करता हूँ । वंश ने फिर पूंछा - पापा आपको एक घंटा काम करने का कितना पैसा मिलता है ? पिता ने झुंझलाते हुए कहा-तुम्हे इन बातो से कोई मतलब नहीं होना चाहिए तुम अभी बच्चे हो और बच्चों जैसी बातें करा करो।वह बार-बार जिद करता रहा , आखिर पिता ने कहा कि मैं एक घंटे में १०० रूपये कामता हूँ। वंश थोड़ी देर तक चुप रहा और बोला- पापा मुझे ५० रूपये चाहिए।
क्या इसीलिये पूंछ रहे थे कि मैं एक घंटे कितने रूपये कामता हूँ ? क्या करोगे ५० रूपये का तुम, पिता ने गुस्से से पूछा ? मैं कुछ खरीदना चाहता हूँ, वंश ने जवाब दिया। मैं किसी फालतू चीज के लिए पैसे नहीं दे सकता , जाओ जाकर अपने कमरे में सो जाओ-पिता ने गुस्से में कहा ,वंश बार-बार जिद करता रहा तो पिता ने उसके एक चांटा जड़ दिया। वह रोते हुए अपने कमरे में चला गया। वंश को रोते हुए देख कर पिता का दिल पिघल गया , वह सोचने लगे कि वह वंश के साथ कुछ ज्यादा ही सख्त हो गए। उसने रोते हुए वंश को एक ५० का नोट दे दिया और कहा कि चलो अब लाइट बंद करो और सो जाओ।
बहुत देर तक जब वंश के कमरे की लाइट बंद नहीं हुई तो उन्होंने अन्दर जाकर देखा। वंश अपनी गुल्लक तोड़ कर पैसे गिन रहा था। अब तो उनके क्रोध की कोई सीमा न रही ।तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई गुल्लक को तोड़ने की ? क्या करोगे तुम इतने पैसों का ? गुस्से में पिता ने पूंछा।
क्योकि मेरे पास पूरे पैसे नहीं थे रोते हुए वंश ने कहा। उसने अपना हाथ आगे बढा कर कहा- पापा ! अब मेरे पास पूरे १०० रूपये हैं, मैंने बहुत दिनों में इकट्ठे किए हैं। क्या मैं आपका एक घंटा खरीद सकता हूँ ? आप प्लीज कल जल्दी घर वापस आ जाना, मैं आपके साथ कुछ समय बिताना चाहता हूँ ।