Saturday, January 12, 2013

संजीवनी

काफी समय बाद देख रहा था उन्हे,चेहरे पर उदासी और अकेलेपन के भाव लिए जैसे किसी  कभी न टूटने वाली खामोशी धारण किए एकटक शून्य को निहार रहे  थे , मेरे अभिवादन की अवाज सुनकर, उन्होने मुझे देखा , वे खुश हो उठे उनका रोम-रोम खिल गया मानो लम्बे समय के बाद किसी को देखकर वात्सल्य का सागर मुझपर उड़ेल देना चाहते हों । और फिर शुरु हो गया उनके जीवन की उन घटनाओं का दौर जिन्हें शायद उनके परिवार वाले नहीं सुनना चाहते थे। वो लगातार बोलते जा रहे थे और मैं मूक श्रोता बना बीच-बीच में हां-हूं कर रहा था। लगातार दो घण्टे तक अपने दिल की बातें कह चुकने के बाद मुझे उनके चेहरे पर जो सन्तुष्टि दिखाई दी मानो जिसे वो वर्षों से खोज रहे हों।
और उनके चेहरे के भाव देखकर ऐसा लग रहा था मानो उन्हें जीवन संजीवनी मिल गई हो।

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