Wednesday, March 3, 2010

बाल


विनीत उपाध्याय की लघुकथा
बाल

सरला !!!!!!!!!!!!!!!!
निवाला थूकते हुए राहुल जोर से चिल्लाया ! राहुल की चीख ने आराम करती हुई सरला की नींद में खलल पैदा कर दी ! ये क्या बेहूदगी है ? रोजाना सब्जी और रोटी में बाल निकलते है ! अगर तुम्हारे बाल झड़ रहे है तो डॉक्टर से दवा क्यों नहीं लेती ? यूं रोजाना बाल क्यों खिलातीं हो! राहुल गुस्से में चिल्ला रहा था !
सरला ने तमतमाते हुए कहा अगर बाल बर्दाशत नहीं कर सकते तो नौकरानी का इंतजाम कर लो मै कोई तुम्हारी नौकरानी नहीं हूँ , जिसने खाना बनाने का ठेका ले रखा हो ! इतना कहकर सरला पैर पटकते हुए अपने कमरे मे चली गई ! बेटे और बहू की बढती हुई तकरार को देखकर माँ ने कुछ सकुचाते हुए बेटे से कहा - "बेटा ! बहू पर नाराज़ मत हो ! उसकी कोई गलती नहीं है , आजकल मेरे ही बाल झड़ रहे है ! अब आगे से मै ध्यान रखूंगी" माँ के शब्द सुनकर राहुल हतप्रभ रह गया और सोचने लगा की क्या सरला रोज माँ से ही .....................!


3 comments:

उमेश महादोषी said...

अच्छा विषय चुना है । रचना अपना प्रभाव छोड़ने में सफल हुई है । यदि आराम करती सरला को खाना खाते उसकेपति के समीप दिखा सकें , रचना में स्वाभाविकता और बढ जाएगी।

Unknown said...

umesh ji ne theek hi kaha hain ki swabhavikta ki kami hain ek samwad bhi is baat ko pukhta karta hain... parntu kam shabdo main pura baaw dikha dena ye ek acchi aadat hain tumhari...atyant marmik ......

gaurav tyagi said...

kya likhte hain aap bahut acchi aur vyavahrik rachna hai.aap aur aage jaye ye hamari subhkamna hai.